हेल्लो दोस्तों! कैसे हो आप लोग? बढिया होंगे। मैं सीधा मुद्दे पर आता हूँ। मैं आज ऐसे विषय पर बात कर रहा हूँ, जिस पर अकसर कोई बात ही नहीं की जाती और कई बार छात्र के मन में इस तरह के विचार आ जाते होंगे, जब वो किसी बड़ी समस्या में खुद को पाते हैं। मैं दरसल इंडिया में होने वाली छात्र के द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के बारे में बताना चाहता हूँ और मुझे लगता है इस विषय पर बात होना जरुरी है क्यूंकि एक छात्र की जिंदगी में कभी न कभी ऐसा विचार जरुर आता होगा, जब वो इस तरह का गलत कदम उठाने लग जाते हैं। चलो अब में अपनी बात शुरु करता हूँ और इसके कारणों का पता लगाते हैं कि आखिर कोई ऐसा क्यूँ करता है क्या आत्महत्या के अलावा कोई और विकल्प नहीं होता। इसके पीछे की वास्तविकता क्या है इसका पता लगाते हैं।
हमारे इंडिया में रोज लगभग 28 छात्र आत्महत्या करते हैं यानी हर घंटे 1 एक छात्र अपनी जान ले लेता है और लगभग 30% छात्र परीक्षा में फेल होने की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं। शायद हो सकता है कि आप इस बात का भरोसा न हो पर इसकी मुख्य वजह हमारा एजुकेशन सिस्टम है। अगर आप सोच रहें हैं कि हमारा एजुकेशन सिस्टम इसकी वजह कैसे हो सकती है तो मुझे अच्छा लगा कि आपने ये पूछा। मैं बताता हूँ कि हमारा एजुकेशन सिस्टम आखिर कैसे काम करता है।
हमारे टीचर्स के लिये
ये जो 30% छात्र जो परीक्षा में फेल हो जाने की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं, उन्हें हमारे एजुकेशन सिस्टम ने इस बारे में कभी बताया ही नहीं कि फेल होना उतना ही नार्मल है जैसे पास होना। हम सभी किसी न किसी चीज़ में फेल जरुर होते हैं और ये बिलकुल नार्मल है। हम अगर हमारे फेल होने की आज गिनती करने लग जाएँ तो गिनती कभी नहीं खत्म हो पाएगी। हमारे टीचर जो अक्सर हमारे एग्जाम के नंबर्स पर, हमसे ज्यादा ध्यान देते हैं जिसके ज्यादा नंबर वो टोपर जिसके कम नंबर वो फेल, इसी तरह से ग्रेड दिये जाते हैं। ये हमारा एजुकेशन सिस्टम कब बिज़नस में बदल गया, पता ही नहीं लगा। एक टीचर की परिभाषा कब बदल गयी पता ही नहीं चला, टीचर जिसका मतलब सबको पढ़ाना होता है उसका मतलब आज "केवल पैसो" के लिए पढाना हो गया है। टीचर्स, जो अल्बर्ट आइंस्टीन और एडिसन का उदहारण देते हैं कि वो फेल हुए लेकिन हार नहीं मानी, कोशिश करो कहते हैं उन्होंने कभी क्यूँ नहीं बताया कि फेल होने से कभी कोई फर्क नहीं पढ़ता, क्यूंकि फेल तो आइंस्टीन और एडिसन भी हुए थे। और दूसरी तरफ बस एग्जाम क्लियर करने पर ही ज्यादा ध्यान देते हैं। टीचर्स कभी क्यूं नहीं बताते कि फेल होना भी उतना ही नार्मल ना पास होना, इससे आपके खुद की जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पड़ता, ये दोनों ही जिंदगी के पार्ट हैं। मेरी बात टीचर्स को बिलकुल अच्छी नहीं लगेगी। पर सच यही है पास या फेल दोनों ही हमारी जिंदगी के एक नार्मल पार्ट है। अगर शायद इस तरह से स्कूल, कॉलेज में बताया जाए दोनों को लेकर की पास और फेल जैसा कुछ नहीं है। तो शायद ये 30% छात्र जो फेल होने कि वजह से आत्महत्या कर लेते हैं ये नंबर्स कुछ नहीं होंगे।
हमारे पेरेंट्स के लिये
आपके पेरेंट्स जिन्हें हमेशा लगता है कि वो कभी गलत नहीं हो सकते, वो आपके बारे में कभी गलत नहीं सोच सकते। उन्हें ऐसा क्यूँ लगता है कि वो गलत नहीं हो सकते, क्यूँ वो इंसान नहीं है। गलती करना इंसानों की आदत है जो बिलकुल नार्मल बात है। मैं ये इशलिए बता रहा हूँ क्यूंकि आपकी करियर की चॉइस सबसे पहले आपके प्रेंट्स ही तो लेते है कि आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, कौन सा करियर ज्यादा अच्छा है, ये बिना पूछे कि आपको क्या करना है क्यूंकि आपकी चॉइस उनके लिए शायद गलत हो सकती है। क्यूंकि उन्हें लगता है कि बस पेरेंट्स ही आपके बारे में अच्छा सोच सकते हैं, आप अपने बारे में अच्छा नहीं सोच सकते। आपको सिंगर बनना है या आपको डांसर बनना है जो भी आपको अच्छा लगता है उनसे उन्हें कोई मतलब नहीं। उन्हें बस आपको आगे जाकर चार्टड अकाउंटेंट या बिज़नेस मैन या इंजिनियर बनना होता है। और तो और दसवीं और बारवीं के बोर्ड के एग्जाम को ऐसे बना देते हैं कि अगर इनमे नंबर्स नहीं लाये तो तुम्हरी जिंदगी कुछ नहीं है। मेरे ख्याल से आपको इस बारे में तो जरुर सुना होगा कि बोर्ड के एग्जाम में नंबर कम लाने पर किसी ने आत्महत्या कर ली, पेरेंट्स को ऐसा क्यूँ लगता है कि कुछ नंबर्स ही हमारी जिंदगी तय कर सकते हैं। पेरेंट्स को ऐसा क्यूँ लगता है कि उनके बच्चों की जिंदगी कुछ नंबर्स तक ही सीमित है। पेरेंट्स को सोचना चाहिए कि नंबर्स को नंबर्स इशलिये कहते हैं क्यूंकि ये बस नंबर है और कुछ नहीं। जब कोई बड़ा करता है तो उसकी जिंदगी में नंबर्स का कोई हाथ नहीं होता, उसने जो किया होता है बस उसी को ही तो देखा जाता है। कभी पेरेंट्स को आइंस्टीन के नंबर्स के बारे में पता है कि वो कितने नंबर्स से स्कूल या कॉलेज पास किये थे। क्यूँ पेरेंट्स को नहीं पता क्यूंकि उन्हें हमेसा उनके द्वारा किये गए काम से जाना जाता है उनके नंबर्स से नहीं। पेरेंट्स को समझना चाहिए कि गलत कोई भी हो सकता है ये बिलकुल नार्मल है और गलती करना हमारी जिंदगी का ही एक पार्ट है। क्यूंकि गलती करके ही इंसानों ने चीज़ों को सिखा है गलती किये बिना कोई कुछ नहीं सीख पाया है। पेरेंट्स को अपने बच्चो को उनकी खुद की चॉइस के लिए सराहना करनी चाहिए। यही वो बात ही जो आपके बच्चों को आगे ले जा सकती है। कृपया अपने बच्चों को उनकी पसंद का करियर चुनने दें नहीं तो किसी दिन आपके ही बच्चे आपके ही एक फैसले से परेशान होकर कुछ गलत कर बैठेंगे। उन्हें केवल वही बनाइये जो वो हैं कोई दूसरा मत बनाइये, क्यूंकि कभी कोई दूसरा आदमी नहीं बन सकता। पेरेंट्स से मैं प्रार्थना करता हूँ कृपया करके आप अपने बच्चों को उनके नंबर्स से जज न करें।
आपके पेरेंट्स जिन्हें हमेशा लगता है कि वो कभी गलत नहीं हो सकते, वो आपके बारे में कभी गलत नहीं सोच सकते। उन्हें ऐसा क्यूँ लगता है कि वो गलत नहीं हो सकते, क्यूँ वो इंसान नहीं है। गलती करना इंसानों की आदत है जो बिलकुल नार्मल बात है। मैं ये इशलिए बता रहा हूँ क्यूंकि आपकी करियर की चॉइस सबसे पहले आपके प्रेंट्स ही तो लेते है कि आपको क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, कौन सा करियर ज्यादा अच्छा है, ये बिना पूछे कि आपको क्या करना है क्यूंकि आपकी चॉइस उनके लिए शायद गलत हो सकती है। क्यूंकि उन्हें लगता है कि बस पेरेंट्स ही आपके बारे में अच्छा सोच सकते हैं, आप अपने बारे में अच्छा नहीं सोच सकते। आपको सिंगर बनना है या आपको डांसर बनना है जो भी आपको अच्छा लगता है उनसे उन्हें कोई मतलब नहीं। उन्हें बस आपको आगे जाकर चार्टड अकाउंटेंट या बिज़नेस मैन या इंजिनियर बनना होता है। और तो और दसवीं और बारवीं के बोर्ड के एग्जाम को ऐसे बना देते हैं कि अगर इनमे नंबर्स नहीं लाये तो तुम्हरी जिंदगी कुछ नहीं है। मेरे ख्याल से आपको इस बारे में तो जरुर सुना होगा कि बोर्ड के एग्जाम में नंबर कम लाने पर किसी ने आत्महत्या कर ली, पेरेंट्स को ऐसा क्यूँ लगता है कि कुछ नंबर्स ही हमारी जिंदगी तय कर सकते हैं। पेरेंट्स को ऐसा क्यूँ लगता है कि उनके बच्चों की जिंदगी कुछ नंबर्स तक ही सीमित है। पेरेंट्स को सोचना चाहिए कि नंबर्स को नंबर्स इशलिये कहते हैं क्यूंकि ये बस नंबर है और कुछ नहीं। जब कोई बड़ा करता है तो उसकी जिंदगी में नंबर्स का कोई हाथ नहीं होता, उसने जो किया होता है बस उसी को ही तो देखा जाता है। कभी पेरेंट्स को आइंस्टीन के नंबर्स के बारे में पता है कि वो कितने नंबर्स से स्कूल या कॉलेज पास किये थे। क्यूँ पेरेंट्स को नहीं पता क्यूंकि उन्हें हमेसा उनके द्वारा किये गए काम से जाना जाता है उनके नंबर्स से नहीं। पेरेंट्स को समझना चाहिए कि गलत कोई भी हो सकता है ये बिलकुल नार्मल है और गलती करना हमारी जिंदगी का ही एक पार्ट है। क्यूंकि गलती करके ही इंसानों ने चीज़ों को सिखा है गलती किये बिना कोई कुछ नहीं सीख पाया है। पेरेंट्स को अपने बच्चो को उनकी खुद की चॉइस के लिए सराहना करनी चाहिए। यही वो बात ही जो आपके बच्चों को आगे ले जा सकती है। कृपया अपने बच्चों को उनकी पसंद का करियर चुनने दें नहीं तो किसी दिन आपके ही बच्चे आपके ही एक फैसले से परेशान होकर कुछ गलत कर बैठेंगे। उन्हें केवल वही बनाइये जो वो हैं कोई दूसरा मत बनाइये, क्यूंकि कभी कोई दूसरा आदमी नहीं बन सकता। पेरेंट्स से मैं प्रार्थना करता हूँ कृपया करके आप अपने बच्चों को उनके नंबर्स से जज न करें।
हो सकता है आपको मेरी बात अच्छी न लग रही हो, पर हर तरह के लोग होते हैं अगर आप अच्छे इंसान हो तो जरुरी नहीं कि हर कोई अच्छा हो| मेरा ब्लॉग बहुत बड़ा हो गया पर जरुरी लगा मुझे इस पर लिखना, क्यूंकि छात्र की आताम्हत्या की संख्या रोज बढती जा रही है, खासकर कोरोना के टाइम से क्यूंकि इस बीच लोगो की नौकरी गयी, अभी के समय तक लोगों ने सिर्फ नोएडा में जनुअरी से अब तक 195 लोगों ने आत्महत्या की। क्यूंकि लोग कभी मानना ही नहीं चाहते कि कभी कभी परिस्थिति का हमारे नियंत्रण से बाहर चला जाना नार्मल है। बाकी बहुत सारी बातें हैं कहने के लिए, बाकी बहुत सारे कारण है जिन पर मैं फिर कभी लिखूंगा। अगर लोग मेरी बात से सहमत हो या नहीं हो, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जैसा मुझे लगा वो लिखा, आपको जो अच्छा लगे वो करो।
कुछ सुझाव हो तो कमेंट में लिखें
धन्यवाद!!
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First comment. A very good post.
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